आज भी जिंदा है बॉर्डर फिल्म का असली हीरो भैरोसिंह, जी रहे है गुमनामी जीवन, सरकार से न मिली कोई मदद।

हमारे बॉलीवुड में साल में कई फिल्मे बनती है जिनका कंटेंट सबसे अच्छा और मजेदार होता है वह सुपरहिट हो जाती है और जो दर्शको को नहीं भाती वह फ्लॉप हो जाती है। बॉलीवुड में बहुत सी ऐसी फिल्में बनाई गई है जो रियल लाइफ स्टोरी और देश के इतिहास पर आधारित हो ।

इन फिल्मों में बताया गया है कि हकीकत में क्या क्या हुआ । उन्ही फिल्मों में से एक 1997 में बनाई गयी बॉर्डर फिल्म है जिसमे 1971 में भारत और पा’किस्तान के बीच हुए युद्ध के बारे में बताया गया है ।इस फिल्म में बहुत से अभिनेताओं ने शानदार अभिनय किया है और अपने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। आज हम इस फिल्म के एक असली किरदार के बारे में बताने जा रहे है आइये जानिए।

इस फिल्म में जितने भी अभिनेता थे सबने बखूबी अपना किरदार निभाया था। ये फिल्म सुपरहिट फिल्मो में से एक है। इस फिल्म में एक किरदार भैरो सिंह का था जिसे सुनील शेट्टी ने बखूबी निभाया था आपकी जानकारी के लिए बता दे जिस भैरो सिंह का किरदार सुनील शेट्टी ने निभाया था वो अभी भी जीवित है क्या आप जानते है

ये भैरो सिंह कौन है और कहा रहता है ।आइये बताते है उनके बारे में कुछ। धरा शेरगढ़ के सोलंकियातला गांव में इस जवान का जन्म हुआ था. इसके अलावा 1971 में जैसलमेर के लोंगेवाला पोस्ट पर 14 बटालियन में भी भैरों सिंह भी तैनात थे यहां पर उन्होंने अपनी वीरता और शौर्य को दिखाते हुए पाकिस्तान के कई सैनिकों के दांत खट्टे किए थे.

बता दें कि भैरों सिंह पाकिस्तान और भारत की सीमा पर लोंगेवाला पोस्ट पर मेजर कुलदीप सिंह की 120 सैनिकों की कंपनी के साथ दुश्मनों का सामना करते हुए और टैंक ध्वस्त करते हुए कईं दुश्मनों को मार गिरा चुके हैं.

खबरों के अनुसार शेरगढ़ के भैरो सिंह ने एमएसजी से लगभग 30 पाकिस्तानियों को जिंदा ढेर कर दिया था जिसके बाद उनकी वीरता को सरहाते हुए 1997 में बॉर्डर फिल्म में उनके किरदार को सुनील शेट्टी के जिम्मे सौंपा गया था. हालांकि फिल्म में आपको घर भैरों सिंह की शहादत होते हुए दिखाई दिए थे लेकिन असल जिंदगी के भैरों सिंह आज भी पूरे जज्बे के साथ जिंदा है और पूरी तरह से स्वस्थ भी हैं.

जब उनका एक इंटरव्यू लिया उस दौरान उन्होंने बताया था कि बॉर्डर फिल्म में उनका किरदार दिखाया गया इस पर उन्हें गर्व महसूस होता है क्योंकि यह किरदार युवाओं में जोश भरने जैसा साबित हुआ था. हालांकि एक जिंदा व्यक्ति को शहीद के रूप में फिल्माना पूरी तरह से गलत है. बता दें कि 1971 में युद्ध के बाद भैरों सिंह को मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान ने मेडल से नवाजा था

यह मेडल सेना मेडल था. हालांकि एक सैनिक को यदि यह मेडल मिलता है तो उसे कई तरह के लाभ व पेंशन दिए जाते हैं लेकिन भैरों सिंह को ऐसा कोई भी अलाउंस नहीं दिया जा रहा है. वह अभी तक गुमनाम जीवन जी रहे हैं. बता दें कि 1963 में बीएसएफ में भर्ती होने वाले भैरो सिंह ने 1987 में रिटायरमेंट ले ली थी।


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