रणबीर और आलिया की शादी कहाँ हो रही है, क्या है उसकी कहानी

बारिश की बूंदों में अपने-अपने हिस्से की आधी छतरी के नीचे खड़े, प्यार में धड़कते दो दिल… थोड़ा एक दूसरे के करीब पर दोनों में थोड़ा सा फ़ासला भी.

मुंबई के मशहूर आरके स्टूडियो में फ़िल्माया गया फ़िल्म श्री 420 का ये गाना ‘प्यार हुआ इक़रार हुआ’ 67 साल आज भी प्यार का एंथम बना हुआ है.

न मालूम कितनी फ़िल्मों की कितनी प्रेम कहानियों का आग़ाज़ और अंजाम राज कपूर के बनाए आरके स्टूडियो में हुआ है.

कहा जा रहा है कि एक असल प्रेम कहानी यानी आलिया भट्ट और रणबीर कपूर की जोड़ी की शादी की कई रस्में भी इसी आरके स्टूडियो में होने जा रही हैं.

वही स्टूडियो जहाँ रणबीर के पिता ऋषि कपूर और माँ नीतू कपूर की शादी की रिसेप्शन हुई थी.

रणबीर कूपर और आलिया भट्ट

संजय लीला भंसाली

राज कपूर

मीना कुमारी

वो जगह जो 1980 में ऋषि कपूर की शादी के वक्त पूरी हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के दिग्गजों की मौजूदगी का गवाह रही.

यहाँ तक कि उस्ताद नुसरत फ़तह अली ख़ान को सुनने का मौका भी आरके स्टूडियो की दीवारों को मिला जब वो राज कपूर के कहने पर ऋषि कपूर के संगीत समारोह में गाने आए थे. उसका ज़िक्र ख़ुद ऋषि कपूर ने अपनी किताब ‘खुल्लम खुल्ला’ में किया है.

आरके स्टूडियो में लगी भयानक आग

आरके फ़िल्म्स

आरके स्टूडियो तो आज बचा नहीं. 2017 में लगी भयानक आग में स्टूडियो का बड़ा हिस्सा और यहाँ रखा फ़िल्मों से जुड़ा सारा सामान जलकर राख हो गया था.

2018 में कपूर ख़ानदान ने इसे गोदरेज प्रोपर्टीज़ को बेच दिया था. लेकिन लोगों के दिलों में आरके स्टूडियो की यादें आज भी ज़िंदा हैं.

भारत की आज़ादी के एक साल बाद 1948 में महज़ 24 साल की उम्र में राज कपूर ने आरके बैनर बनाया था और आरके स्टूडियो के ख्वाब बुने. यानी इस स्टूडियो की कहानी आज़ाद भारत, उसके बनते बिगड़ते सपनों की भी कहानी है.

दो एकड़ में पसरे आलीशान आरके स्टूडियो और वहाँ पास में बनी राज कपूर की कॉटेज और राज कपूर के क़िस्से आज भी मशहूर हैं.

लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह 1976 में न्यूयॉर्क टाइम्स में बॉलीवुड पर लिखे एक लेख के सिलसिले में आरके स्टूडियो गए थे.

उन्होंने लिखा था, “मैं रात को वहाँ गया. उस वक़्त कमरे में राज कपूर थे और ज़ीनत अमान थीं. सत्यम शिवम सुंदरम की शूटिंग चल रही थी. राज कपूर के कमरे के दीवारों पर हिंदू देवी देवताओं की तस्वीरें थीं, ईसा मसीह, नेहरू, राज कपूर की सारी हीरोइनों की तस्वीरें थीं. किताबों की शेल्फ़ थी जहाँ करीने से किताबें रखी थीं और काँच का एक फूलदान था जिसमें सोने और चाँदी के सिक्के थे.”

“राज कपूर ने मुझे बताया कि जब मैं विदेश दौरे से आता हूँ तो चिल्लर यहाँ डाल देता हूँ. जब मैं नहीं रहूँगा तो लोगों को पता रहेगा कि मैं कहाँ कहाँ गया था.”

तब खुशवंत सिंह ने आरके स्टूडियो को सबसे बड़ा और सबसे ग्लैमरस प्रोडक्शन सेंटर कहा था.

आरके स्टूडियो और राज कपूर के ऐसे किस्से और यादें लोगों के मन में भरी पड़ी हैं.

आरके स्टूडियो की होली

फिर वो आरके स्टूडियो की धमाल वाली होली हो या फिर चेंबुर में आरके स्टूडियो का गणेश महोत्सव.

होली के बाद फ़िल्मी मैगज़ीनों के पन्ने आरके स्टूडियो के होली के किस्सों से पटे रहते थे.

मैगज़ीन के सेंटर स्प्रेड में रंगों में डूबी हीरो हीरोइनों की तस्वीरें देखने के लिए लोग ख़ासतौर पर इन्हें ख़रीदते थे.

आरके स्टूडियो के पास राज कपूर का कॉटेज भी बहुत ख़ास था. लेखिका मधु जैन ने अपनी किताब कपूरनामा में लिखा है, राज कपूर अकसर कहा करते थे कि ये कॉटेज उनके मंदिर की तरह है. राज कपूर द फ़िल्ममेकर और पारिवारिक राज कपूर के बीच इस कॉटेज का दरवाज़ा लाइन ऑफ़ कंट्रोल की तरह था. परिवार इस दहलीज़ को कभी पार नहीं करता था.

मुंबई के चेंबुर इलाक़े को जब कोई नहीं जानता था तब आरके स्टूडियो एक तरह का पर्यटन स्थल था जहाँ बेहिसाब लोगों की भीड़ गेट के बाहर जमा रहती थी- आरके स्टूडियो के उस मशहूर लोगो वाले गेट के बाहर.

आरके स्टूडियो के लोगो की कहानी भी राज कपूर के फ़िल्मी सफ़र और नरगिस से उनसे प्रेम कहानी के साथ शुरू होती है. 1948 में फ़िल्म आग तो कुछ ख़ास नहीं कर पाई लेकिन इसके बाद 1949 में राज कपूर ने नरगिस के साथ फ़िल्म बरसात बनाई.

उस फ़िल्म के एक मशहूर सीन में जहाँ राज कपूर एक हाथ से वायलिन बजा रहे हैं और दूसरी ओर उनकी बाँहों में नरगिस हैं. इसी सीन से प्रेरित होकर लोगो बनाया गया जो हमेशा के लिए आरके स्टूडियो की पहचान बन गया.

1950 में जब राज कपूर नरगिस के साथ फ़िल्म आवारा की शूटिंग कर रहे थे तो उन्हें फ़िल्म का गाना घर आया मेरा परदेसी फ़िल्माना था. तब तक उनके सपनों का आरके स्टूडियो अभी बनकर तैयार नहीं हुआ था- वहाँ दीवारें तो थीं लेकिन अभी छत नहीं थी.

लेकिन सपनों की नगरी वाला वो गाना आरके स्टूडियो में ही फ़िल्माया गया- बिना छत के ही.

जिस आरके स्टूडियो में रणबीर कपूर की शादी होने की बातें हैं वहाँ उन्होंने ख़ुद तो कोई फ़िल्म शूट नहीं की लेकिन उनके परिवार के सदस्यों का बरसों बरस का इतिहास यहाँ छिपा है.

बॉबी, जिस देश में गंगा बहती है, मेरा नाम जोकर, सत्यम शिवम सुंदरम, जागते रहो, प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली जैसी फ़िल्में और इनके गानें यहाँ शूट हुए हैं.

आग में बेशक़ीमती चीज़ें हुईं राख़

आरके फ़िल्म्स

इन फ़िल्मों से जुड़ी अनगिनत निशानियाँ राज कपूर ने आरके स्टूडियो में सजा कर, संवार कर और सहेज कर रखी थी.

फ़िल्म ब़ॉबी में डिंपल की वो ड्रेस जो नेशनल क्रेज़ बन गई थी या श्री 420 और आवारा की वो चार्ली चैपलिन वाली ड्रेस इसी आरके स्टूडियो में रखी हुई थी.

गले का वो हार जो राज कपूर आवारा में नरगिस को पहनाते हैं, दोनों के प्यार की गवाही देती प्यार हुआ इक़रार हुआ वाली काली छतरी. वहीं कहीं कोने में रखी रहती थी.

मधु जैन अपनी किताब कपूरनामा में लिखती हैं, “कई सालों तक राज कपूर की फ़िल्मों से जुड़े कपड़े और सामान आरके स्टूडियो के उस हिस्से में रखे जाते थे जो कभी नरगिस का ड्रेसिंग रूम हुआ करता था. नरगिस ने जब आरके स्टूडियो छोड़ा तो वो कमरा नई हीरोइनों का मेकअप रूम बन गया. कई साल बाद जब मैं स्टूडियो गई तो हर जगह जैसे उस दौर की यादें बिखरी पड़ी थीं.”

आरके फ़िल्म्स

“एक तरफ़ आर्ची कॉमिक्स थीं (राज कपूर को पसंद थी), एक बेजान सी मेनेक्विन नरगिस की वो खूबसूरत काली ड्रेस पहने खड़ी थी जो उन्होंने आवारा में पहनी थी. यहाँ तक कि वो चाकू भी रखा था जिससे फ़िल्म में राजू जग्गा डाकू का ख़ून करता है.”

लेकिन अब ये बीते दौर की बाते हैं. आग में आरके स्टूडियो ही नहीं हिंदी फ़िल्मों का एक पूरा इतिहास ख़त्म हो गया.

आरके स्टूडियो के आस-पास की दुकानों, खोमचों, संस्थानों में काम करने वालों तक के पास अपनी-अपनी यादें हैं. चाहे वो पास में बने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेस से जुड़े लोग हों या स्टूडियो के बाहर चाट-कुलचे और पान की दुकान वाले हों.

2018 में जब इसके बिकने की ख़बर आई तो ऋषि कपूर ने कहा था कि परिवार ने छाती पर पत्थर रखकर ये फ़ैसला लिया है.

हालांकि अब कपूर परिवार ने आरके स्टूडियो की सारी फ़िल्मों के नेगेटिव नेशनल फ़िल्म आर्काइव ऑफ़ इंडिया को सौंप दिए हैं. इसमें 1948 में आई पहली फ़िल्म आग से लेकर आख़िरी फ़िल्म 1999 की आ अब लौट चलें शामिल है.

बीबीसी 70 एमएमरिलीज़ हुई फ़िल्मों की समीक्षा करता साप्ताहिक कार्यक्रम

फ़िल्म प्रेमी अकसर पूछते हैं कि राज कपूर के जाने के बाद आरके फ़िल्म्स और आरके स्टूडियो अपनी जगह क्यों बरकरार नहीं रख पाया.

1988 में राज कपूर के जाने के बाद, रणधीर कपूर ने 1991 में उनकी अधूरी फ़िल्म हीना आरके के बैनर तले पूरी की.

राजीव कपूर ने 1996 में ऋषि कपूर और माधुरी दीक्षित के साथ प्रेम ग्रंथ डाइरेक्ट की और 1999 में ऋषि कपूर ने ऐश्वर्या राय के साथ आ अब लौट चले बनाई. ये आरके स्टूडियो की आख़िरी फ़िल्म थी. इनमें से कोई भी फ़िल्म नहीं चल पाई.

अपनी किताब खुल्लम खुल्ला की रिलीज़ के दौरान ऋषि कपूर ने सुहेल सेठ को एक इंटरव्यू में कहा था, “मैं एक्टिंग में व्यस्त था. शायद हमने दर्शकों के साथ कनेक्ट खो दिया था. इंडस्ट्री बदल रही थी. नए हीरो आ चुके थे. सोच बदल रही थी. मैं बहाने नहीं बना सकता. शायद मुझे नए लोगों को रखना चाहिए था. मैं फ़िल्में डाइरेक्ट नहीं करना चाहता था लेकिन मैं अच्छे लोगों को रख सकता था.”

नई सदी में मिलेनियम जेनरेशन का आरके स्टूडियो से रिश्ता टूट सा गया. कुछ टीवी सिरीयल वहाँ शूट होते रहे. आख़िर में इम्तियाज़ अली की जब हैरी मेट सेजल का एक सीन वहाँ शूट हुआ था.

लेकिन आज रणबीर के ज़रिए आरके स्टूडियो के किस्से और यादें फिर गुलज़ार हुई हैं.

'मेरा नाम जोकर' का एक दृश्य

जब स्टूडियो ज़िंदा था…तो फ़िल्मों, फ़िल्मी सितारों, उनके इशारों, उनके ठहाकों और उनके साज़ो सामान से भरा रहता था.

एक इमारत के लिए ज़िंदा लफ़्ज़ इसलिए इस्तेमाल किया क्योंकि आरके स्टूडियो कोई बेजान इमारत नहीं थी- उसकी दीवारें बोलती थीं, वहाँ रखीं तस्वीरें कहानियाँ सुनाती थीं, वहाँ का एक-एक ज़र्रा और सामान एक अलग दास्तां लिए हुए था.

फिर वो वहाँ रखा बरसात का वायलिन हो जिसे एक हाथ में लिए राज कपूर ने नरगिस को बाँहों में भर लिया था, या वो डफ़ली जिसे जिस देश में गंगा बहती है में बजाते हुए राज कपूर नहीं थकते थे.. या वो अनाम प्रेम पत्र जो राजेंद्र कुमार ने वैजयंतीमाला को संगम में लिखा था.. या हाथ से पेंट किए एमएफ़ हुसैन के वो क्रेडिट जो हिना में इस्तेमाल हुए या श्री 420 वाली राज कपूर की टोपी, या मेरा नाम जोकर का वो जोकर हो.

कहते हैं कि वो जोकर आरके स्टूडियो में आख़िर तक था, उसकी विग निकल चुकी थी, कुर्सी पर बैठे बैठे वो झुक गया था… पर वो सब कुछ देख रहा था. शायद जाते-जाते और राख में जलते जलते भी वो जोकर यही कह रहा हो कि द शो मस्ट गो ऑन.

आरके स्टूडियो में शूट हुआ फ़िल्म प्रेम रोग का वो गाना आज याद आ रहा है. – ये गलियाँ ये चौबारा, यहाँ आना न दोबारा कि हम तो भए परदेसी कि तेरा यहाँ कोई नहीं.

राज कपूर के पोते रणबीर कपूर की शादी के बहाने ही सही, अब लग्ज़री फ़्लैट्स में तब्दील हो चुके आरके स्टूडियो की गलियों में आज फिर से लौटने का मौका मिला है.


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