‘गजिनी’ फिल्म में ‘गजिनी धर्मात्मा’ का रोल करने वाले प्रदीप रावत आज कल कहां हैं?

‘गजिनी’ वो पहली इंडियन फिल्म थी, जिसने देशभर से 100 करोड़ रुपए का कारोबार किया था. अमूमन हिंदी फिल्मों के नाम हीरो के किरदार के नाम पर रखे जाते हैं. इस फिल्म का नाम इसके विलन गजिनी धर्मात्मा के ऊपर रखा गया.

इंट्रेस्टिंग बात ये कि इस फिल्म के बनने में भी सबसे बड़ा रोल उसी आदमी का था. उस आदमी का नाम है प्रदीप रावत. प्रदीप हमें गाहे-बगाहे हिंदी फिल्मों में दिख जाते हैं. मगर दक्षिण भारतीय फिल्मों में उनकी मजबूत पैठ है. इनफैक्ट उन्होंने अपने साउथ इंडियन फिल्म करियर की शुरुआत देश के सबसे बड़ा डायरेक्टर एस.एस.

राजमौली की फिल्म से की थी. वो आदमी जिसकी कहने पर आमिर खान फिल्म बना देते हैं और वो फिल्म देश की सबसे कमाऊ फिल्म बनती है. उन्हें साउथ का सबसे बड़ा डायरेक्टर ढूंढकर निकालता है. मगर इस सबकी शुरुआत हुई थी प्रेम से.

# वो आदमी जो प्यार के चक्कर में मॉडल बन गया

प्रदीप रावत का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ. साधारण परिवार था. दूर-दूर तक कोई फिल्म और एक्टिंग से कोई वास्ता नहीं था. मगर प्रदीप को प्रेम हो गया. वो लड़की पुणे में रहती थी. तो पुणे आना-जाना शुरू हुआ.

वो लड़की कुछ मॉडलिंग की फील्ड से जुड़े कुछ लोगों को जानती थी. उसने प्रदीप की फोटो मॉडलिंग एजेंसियों को भेज दी. काम मिलने लगा. प्रेम में लोग क्या-क्या बनते हैं, प्रदीप मॉडल बन गए. मगर उन्हें लग रहा था कि ये काम नहीं जम रहा. छोड़-छाड़कर वापस घर लौट आए.

कुछ समय के बाद वो बम्बई गए. एक्टिंग करने. स्ट्रगल करना पड़ा मगर काम मिलने लगा. उनका पहला रोल था बी.आर. चोपड़ा की ‘महाभारत’. इसमें प्रदीप ने ‘अश्वत्थामा’ का रोल किया था. आगे उन्हें कुछ छोटी बजट की फिल्मों में लीड रोल्स मिलने लगे.

2-3 फिल्मों के पिटने के बाद प्रदीप को लगा कि उनसे गलती हो गई है. अपने एक इंटरव्यू में प्रदीप बताते हैं कि उन्हें रियलाइज़ हुआ कि वो फिल्मों में लीड रोल्स करने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में उन्होंने सपोर्टिंग रोल्स करने शुरू कर दिए.

प्रदीप ने अपने करियर की शुरुआत बी.आर. चोपड़ा की 'महाभारत' में अश्वत्थामा के रोल से की थी.

अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्म है ‘डायल M फॉर मर्डर’. 1985 में प्रदीप ने इस फिल्म के हिंदी रीमेक ‘ऐतबार’ में काम किया. प्रदीप ने फिल्म में पुलिसवाले का रोल किया था. अब वो ऐसे ही छोटे-बड़े रोल्स में दिख रहे थे.
मगर ऐसा नहीं हो पा रहा था कि किसी फिल्म में उनका काम याद रखा जाए. या किसी फिल्म को उनके काम की वजह से याद रखा जाए. ऐसे रोल्स नहीं मिल रहे थे. बावजूद इसके वो ‘अग्निपथ’, ‘बागी’, ‘कोयला’, ‘मेजर साब’ और ‘सरफरोश’ जैसी फिल्मों में नज़र आए.

# मुकेश ऋषि ने ‘लगान’ करने से मना किया, तो प्रदीप रावत को मिल गई फिल्म

फाइनली वो फिल्म आई, जिसने कई मायनों में प्रदीप का जीवन और करियर बदलकर रख दिया. उस फिल्म का नाम था ‘लगान’. इस फिल्म में देवा सिंह सोढ़ी के रोल में मुकेश ऋषि को कास्ट किया जा चुका था. मगर फिल्म के काम में कुछ देरी होने लगी. फिल्म की शूटिंग का शेड्यूल बदल गया. नए शेड्यूल के मुताबिक जिस वक्त ‘लगान’ की शूटिंग होनी थी, वो डेट मुकेश ने किसी और प्रोड्यूसर को दे दिया था. इसलिए उन्हें आमिर खान की ये फिल्म छोड़नी पड़ी.

मुकेश ऋषि तब बड़े स्टार थे. उन्हें नेगेटिव रोल में लिए बिना हिंदी फिल्में बनती ही नहीं थीं. मगर 'सरफरोश' में उन्होंने पॉज़िटिव किरदार निभाया, जिसे पब्लिक ने खूब पसंद किया. इसलिए 'लगान' में भी आमिर उन्हें लेना चाहते थे.

मुकेश ऋषि तब बड़े स्टार थे. उन्हें नेगेटिव रोल में लिए बिना हिंदी फिल्में बनती ही नहीं थीं. मगर ‘सरफरोश’ में उन्होंने पॉज़िटिव किरदार निभाया, जिसे पब्लिक ने खूब पसंद किया. इसलिए ‘लगान’ में भी आमिर उन्हें लेना चाहते थे.

मुकेश ऋषि के फिल्म से अलग होने के बाद इस रोल में प्रदीप रावत को कास्ट किया गया. क्योंकि देवा के किरदार के लिए अलग कद-काठी वाले एक्टर की ज़रूरत थी. ‘लगान’ के 20 साल पूरे होने पर प्रदीप रावत ने बताया कि उनके लिए फिल्म में क्रिकेट खेलना मुश्किल नहीं था.

क्योंकि क्रिकेट खेलना उन्हें आता था. वो टीम के बाकी सदस्यों को सिखाते भी थे. मसला ये था कि प्रदीप को फिल्म में सिर्फ सिख दिखना नहीं था. वो गहरे में उतरना चाहते थे. जैसे ही उन्हें ये रोल मिला, वो फौरन गुरुद्वारे जाकर मत्था ठेक आए. जितने दिन फिल्म की शूटिंग चली, उस पूरे पीरियड में प्रदीप ने शराब या सिगरेट को हाथ नहीं लगाया.

दूसरी दिक्कत ये थी कि प्रदीप ने पंजाब में काफी समय गुज़ारा है. मगर उनकी पंजाबी भाषा बहुत दुरुस्त नहीं है. क्योंकि बोल-चाल में इस्तेमाल नहीं होती. डायलॉग्स का सही होना ज़रूरी था. क्योंकि इस फिल्म की डबिंग नहीं होनी थी. इसे सिंक-साउंड में शूट किया जाना था.

सिंक-साउड यानी शूटिंग के दौरान जो रिकॉर्डिंग हुई है, उसे ही फिल्म में इस्तेमाल किया जाएगा. पोस्ट-प्रोडक्शन में उसे बदला नहीं जाएगा. ऐसे में आशुतोष गोवारिकर ने अपनी यूनिट की मदद ली. फिल्म की यूनिट में एक कैमरामैन था, जो साफ पंजाबी बोलता था. उसने बताया कि किस वाक्य और शब्द को कैसे बोलना है. इस चीज़ ने प्रदीप की बहुत हेल्प की.

फिल्म 'लगान' में देवा सिंह सोढ़ी के रोल में प्रदीप रावत.

# एस. एस. राजमौली ने प्रदीप को ढूंढकर निकाला

हिंदी फिल्मों में एक से रोल्स कर-करके प्रदीप थकने लगे थे. मगर घर चलाना था, क्विट कर देने का ऑप्शन नहीं था. ऐसे में उन्होंने साउथ जाने का फैसला किया. हुआ ये कि एस.एस. राजमौली ‘सई’ नाम की एक फिल्म बनाने जा रहे थे. उसमें नेगेटिव रोल के लिए उन्हें कोई तगड़ा एक्टर चाहिए था.

वो चाहते थे कि लोगों ने उस एक्टर को कम देखा हो. थोड़ा नया हो. उनके पैमानों पर साउथ का कोई एक्टर खरा नहीं उतर पाया. उन्होंने अपने असिस्टंट लोगों को बोला कि जाओ और मुंबई से उनकी फिल्म के लिए एक्टर ढूंढकर लाओ. इतना सा ब्रीफ लेकर उनके असिस्टंट महादेवन मुंबई आए. उन्हें कोई आइडिया नहीं था कि राजामौली किसी तरह का एक्टर ढूंढ रहे हैं.

मुंबई में थोड़ी-बहुत खोजबीन करने के बाद महादेवन एक बीच बैठे थे. यहां उन्होंने एक सरदार जी को देखा. उन्हें देखते ही महादेवन को ‘लगान’ के सरदार जी की याद आ गई. ‘लगान’ में प्रदीप ने देवा नाम के बैटर का रोल किया था. महादेवन न प्रदीप का नाम जानते थे, न उनका पता.

उन्होंने मुंबई के एक कास्टिंग एजेंसी को फोन करके ‘लगान’ वाले उस एक्टर के बारे में पूछा. उस एजेंसी ने प्रदीप को फोन किया. मीटिंग फिक्स हुई. महादेवन से मिलने के बाद प्रदीप का पहला सवाल था, कि वो लोग वाकई उन्हें अपनी फिल्म में लेने को सीरियस हैं!

फिर पता चला कि ये फिल्म हैदराबाद में शूट होगी. प्रदीप ने कहा कि उनकी एक डिमांड है. कि मेकर्स उनका हैदराबाद से वापसी का टिकट करवा दें. महादेवन ने बताया कि उन्हें इन चीज़ों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. वो राजामौली की फिल्म है, सब हो जाएगा. प्रदीप ने ये नाम पहली बार महादेवन के मुंह से सुना था.

इतने सबके बाद प्रदीप हैदराबाद पहुंचे. वो अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उन्होंने करीब 30 साल के शख्स को अपनी ओर आते देखा. लोगों ने बताया कि ये एस. एस. राजमौली हैं. तेलुगु सिनेमा के धुरंधर फिल्ममेकर हैं. हल्की-फुल्की बातचीत के बाद राजमौली ने प्रदीप का टेस्ट लेना शुरू किया.

उन्होंने प्रदीप को एक सीन दिया और उसे अपने हिसाब से करने को कहा. इस सीन में गुस्से में साल प्रदीप को खटिया पर बैठना था. प्रदीप ने परफॉर्म करना शुरू किया. वो अपनी एक्टिंग में इतने इनवॉल्व हो गए कि गुस्से में खटिया उठा लिया. प्रदीप ने जिस तरह से ये सीन किया,

वो राजामौली की फिल्म वाले विलन के कैरेक्टर से अलग था. मगर वो प्रदीप की परफॉरमेंस से इतने इंप्रेस हुए कि अपनी स्क्रिप्ट में बदलाव करने शुरू कर दिए. उन्होंने अपने विलन को प्रदीप रावत के हिसाब से ढाल दिया. इस फिल्म में नितिन और जेनीलिया डिसूज़ा ने लीड रोल्स किए थे.

प्रदीप ने फिल्म में माफिया लीडर भिक्क्षु यादव का रोल किया था. हिंदी बेल्ट में भले ही उन्हें ‘गजिनी’ की वजह से याद किया जाता है. मगर साउथ में वो अब भी ‘सई’ वाले विलन के तौर पर ही जाने जाते हैं. ये बाद खुद प्रदीप रावत स्वीकार करते हैं.

एस.एस. राजामौली डायरेक्टेड फिल्म 'सई' के एक सीन में प्रदीप रावत. फिल्म में उन्होंने भिक्क्षु यादव नाम के माफिया का रोल किया था.

एस.एस. राजामौली डायरेक्टेड फिल्म ‘सई’ के एक सीन में प्रदीप रावत. फिल्म में उन्होंने भिक्क्षु यादव नाम के माफिया का रोल किया था.

दी लल्लनटॉप के साथ हुए हालिया इंटरव्यू में आशीष विद्यार्थी ने बड़ी सुंदर बात कही थी. उन्होंने कहा कि आर्टिस्ट सिर्फ एक चीज़ से डरता है, वो है anonymity यानी गुमनामी. वो चाहता है कि लोग उसे उसके क्राफ्ट की वजह से पहचाने. प्रदीप का ये आशीष विद्यार्थी मोमेंट था. आशीष विद्यार्थी का धमनियों में रक्त का संचार करने वाला इंटरव्यू आप यहां देख सकते हैं-

# ‘गजिनी’ बनाने का आइडिया आमिर खान को गजिनी ने ही दिया

साउथ में प्रदीप ने माहौल बना लिया था. उन्हें बढ़िया मात्रा में काम मिलने लगा था. इस दौरान वो ‘छत्रपति’, ‘स्टालिन’ और ‘गजिनी’ जैसी सुपरहिट तेलुगु और तमिल फिल्मों में नज़र आए. तमिल फिल्म ‘गजिनी’ में प्रदीप ने डबल रोल किया था. आमिर खान दीवाली पर अपने घर पार्टी रखते हैं.

यहां वो अपने करीबी दोस्तों को बुलाते हैं. ‘लगान’ की तकरीबन पूरी स्टारकास्ट हर साल वहां होती है. ऐसी ही एक पार्टी पर प्रदीप, आमिर से मिले. उन्होंने आमिर से कहा कि हाल ही में उन्होंने ‘गजिनी’ नाम की फिल्म की है, उन्हें वो फिल्म देखनी चाहिए. टालते-टालते आमिर को वो फिल्म देखने में 6 महीने लग गए. फिर उन्होंने आमिर से इस फिल्म को रीमेक करने की चर्चा की. मगर आमिर खान रीमेक्स में काम नहीं करने के लिए जाने जाते थे. उन्होंने प्रदीप की बात को ज़्यादा सीरियसली नहीं लिया.

पता नहीं कहां से ये खबर पब्लिक में आ गई कि आमिर ‘गजिनी’ को रीमेक करने जा रहे हैं. फिर तमिल फिल्म के लीड एक्टर सूर्या ने आमिर से इस फिल्म को हिंदी में बनाने की बात कही. सूर्या ने कहा कि आमिर से बेहतर वो रोल कोई और एक्टर नहीं कर सकता. फाइनली इस फिल्म पर काम शुरू हो गया.

अल्लू अर्जुन के पापा अल्लू अरविंद इस फिल्म को प्रोड्यूस करने को तैयार हो गए. ओरिजिनल डायरेक्टर ए.आर. मुरुगाडॉस को भी इस फिल्म से जोड़ा गया. आमिर गजिनी को जस का तस रीमेक करना चाहते थे. कई रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया जाता है कि फिल्म के हिंदी वर्ज़न का क्लाइमैक्स अलग करना चाहते थे. इसलिए आमिर ने अपनी फिल्म का क्लाइमैक्स खुद लिखा. फिल्म के विलन गजिनी धर्मात्मा का रोल दिया गया प्रदीप रावत को.

J.W. मैरियट होटल में 'गजिनी' की सक्सेस पार्टी में जिया खान, असिन, आमिर खान और डायरेक्टर ए.आर. मुरुगाडॉस के साथ प्रदीप रावत.

J.W. मैरियट होटल में ‘गजिनी’ की सक्सेस पार्टी में जिया खान, असिन, आमिर खान और डायरेक्टर ए.आर. मुरुगाडॉस के साथ प्रदीप रावत.

2008 में ‘गजिनी’ रिलीज़ हुई. ये भारतीय सिनेमा इतिहास की पहली फिल्म थी, जिसने देशभर से 100 करोड़ रुपए से ज़्यादा का बिज़नेस किया. सूर्या और मुरुगाडॉस ने ऑन रिकॉर्ड ये बात स्वीकार की कि हिंदी गजिनी का क्लाइमैक्स तमिल वर्ज़न से बेहतर था. इस फिल्म के बाद प्रदीप रावत को हिंदी बेल्ट में मजबूत पहचान मिली, जो ताउम्र उनके साथ रहेगी. वो इंडिया की पहली सौ करोड़ी फिल्म के विलन हैं, जिस फिल्म का नाम उनके किरदार के ऊपर रखा गया.

# अब हिंदी फिल्मों में क्यों नहीं दिखते प्रदीप रावत?

प्रदीप हिंदी फिल्मों से भले दूर हैं मगर वो दक्षिण भारतीय फिल्मों में खूब काम कर रहे हैं. तेलुगु भाषा की वो 50 से ज़्यादा फिल्मों में काम कर चुके हैं. 15 से ज़्यादा तमिल फिल्मों का हिस्सा रह चुके हैं. उन्होंने मलयाली औऱ कन्नड़ा भाषा की फिल्मों में भी काम किया है. बाकी हिंदी तो है ही.

प्रदीप की आखिरी हिंदी फिल्म 2015 में रिलीज़ हुई थी, जिसका नाम था ‘सिंह इज़ ब्लिंग’. जब उनके हिंदी फिल्मों से दूर रहने की वजह पूछी जाती है, तो वो कुछ अलग और नया नहीं मिलने की शिकायत करते हैं. साथ में ये भी जोड़ते हैं साउथ में उनका काम अच्छा चल रहा है.

इसलिए वो अपनी फिल्मों को लेकर थोड़े चूज़ी हो गए हैं. क्योंकि उन्हें पैसों की तंगी की वजह से काम नहीं करना पड़ रहा है. आर्थिक विभाग ठीक है. वो उम्मीदवान हैं कि हिंदी सिनेमा में जल्द ही उन्हें अपने लायक कुछ काम मिलेगा.


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