माता-पिता पहुंचे कोर्ट- बेटा-बहू एक साल में बच्चा दें या 5 करोड़ रुपये

एक बुजुर्ग कपल है. उनका एक बेटा है. बेटे को उन्होंने खूब पढ़ाया, लिखाया. लड़के को पायलट बनना था, तो लोन लेकर उसकी ट्रेनिंग कराई. विदेश भेजा. फिर धूमधाम से शादी कराई. लेकिन शादी के कुछ साल बाद माता पिता कोर्ट पहुंच गए. कहा,

हमने बेटे के लिए इतना कुछ किया, लेकिन वो हमें पोता पोती तक नहीं दे रहा. अल्टीमेटम दे दिया, या तो एक साल में बच्चा दो, या 5 करोड़ रुपये दो. काहे से कि हमने इत्ता पइसा तुम्हाए लालन पालन में खर्च किया है.

ये जो कहानी हमने आपको बताई, ये काल्पनिक नहीं है. ये सच्ची खबर है. मामला उत्तराखंड का है. संजीव रंजन प्रसाद और साधना प्रसाद ने अपने बेटे और बहू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया है. संजीव BHEL में अफसर रह चुके हैं. रिटायरमेंट के बाद वो अपनी पत्नी के साथ हरिद्वार में रहते हैं. दंपति का कहना है,

“हमने अपने बेटे श्रेय सागर के लिए सब कुछ किया. उसकी परवरिश में कोई कमी न हो इसलिए दूसरा बच्चा भी पैदा नहीं किया. उसे पढ़ाया-लिखाया. श्रेय को पायलट बनना था. हमने उसे ट्रेनिंग के लिए अमेरिका भेजा. पैंतीस लाख रुपये फीस दी.

वहां रहने खाने का बीस लाख खर्च अलग. आज श्रेय नामी एयरलाइन कंपनी में पायलट है. 2016 में हमने बेटे की शादी नोएडा में रहने वाली लड़की से कराई. दोनों को हनीमून के लिए थाईलैंड भेजा. आज बेटा पायलट है और बहू नोएडा में जॉब करती है.

हमने अपनी सारी जमा पूंजी बेटे पर लगा दी. लेकिन शादी के छः साल बाद भी हमें पोता-पोती को खिलाने का सुख नहीं मिल रहा. हम कोर्ट ये यही प्रार्थना करते हैं कि बेटे के लालन पालन और परवरिश पर खर्च किये गए 5 करोड़ रुपये दिलवाए जाए. 2.5 करोड़ बेटा दे और 2.5 करोड़ बहू. नहीं तो एक साल के अंदर पोता या पोती दें.”

संजीव जी का कहना है कि जब वो अपने घर के सामने से छोटे-छोटे बच्चों को जाते देखते हैं तब उनका मन दुखता है, श्रेय की मां को भी बहुत टीस उठती है. उन्होंने बड़ा भावुक होते हुए ये बात कही.

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क्या पेरेंट्स की खुशी के लिए बच्चे पैदा करना बच्चों की जिम्मेदारी है? सांकेतिक फोटो- Pixabay

ये कोई अनोखा मामला नहीं है. कई घरों में माता पिता इस बात से परेशान रहते हैं कि उनका पढ़ा-लिखा बेटा या बेटी एंटरप्रेन्योर बन रहे हैं, नौकरी नहीं कर रहे, नौकरी लग गई तो शादी नहीं कर रहे या शादी हो गई तो बच्चे नहीं कर रहे. हम यही समझने की कोशिश करेंगे कि क्या अपने पेरेंट्स को दादा-दादी, या नाना-नानी बनाना बच्चों की ‘ज़िम्मेदारी’ है?

जिम्मेदारी का जिक्र हुआ है तो पहले इसे ही समझ लेते हैं. किसी भी पेरेंट की ये जिम्मेदारी होती है कि वो अपने बच्चों को पढ़ाएं, उनकी ज़रूरतें पूरी करें. ये सच है कि बच्चों की पढ़ाई के लिए और उनको उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए माता-पिता बहुत संघर्ष करते हैं.

उसी तरह जब माता-पिता रिटायर होते हैं तो बच्चों की जिम्मेदारी बनती है कि वो उनका ख्याल रखें, उस उम्र की उनकी ज़रूरतों को समझें. उन्हें वक्त दें. लेकिन माता-पिता की ज़रूरतों को पूरा करने का मतलब ये नहीं हो सकता कि बच्चे अपने सिर पर एक ऐसी जिम्मेदारी उठा लें जिसके लिए वो तैयार नहीं हैं.

इस केस में हमारी बात बुजुर्ग दंपत्ति के बेटे या बहू से नहीं हो पाई है. इसलिए हम ये नहीं कह सकते हैं कि बच्चा न करने की उनकी वजहें क्या हैं. मेडिकल रीज़न्स हैं या ये उनकी चॉइस है.

लेकिन बच्चा पैदा करना, उसे पालना एक बड़ी और जीवनभर की जिम्मेदारी होती है. बच्चा चाहिए या नहीं, चाहिए तो कब चाहिए, कितने बच्चे चाहिए? ये तय करने का हक केवल और केवल एक कपल का होना चाहिए न कि उनके परिवार या रिश्तेदारों का.

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बुजुर्ग कपल का फरमान- पोता-पोती दें या पांच करोड़ रुपये दें. सांकेतिक फोटो

भारतीय परिवारों में नए बच्चे के साथ लोगों को बहुत सारे नए रिश्ते मिलते हैं. जैसे चाचा, मामा, मौसी, बुआ, दादा-दादी, नाना-नानी. कई बार लोग ये भूमिकाएं निभाने के लिए एक्साइटेड भी होते हैं, क्योंकि इससे उनकी भी खुशियां जुड़ी होती है. लेकिन एक बच्चे को ‘पालने’ की ज़िम्मेदारी एक्चुअल में केवल उसके मां-बाप की हो होती है. इसलिए ये ज़रूरी है कि बच्चा पैदा करने से पहले वो दोनों इसके लिए प्रिपेयर रहें.

और शादी का मतलब ये तो बिल्कुल नहीं लगाना चाहिए कि अब बच्चा होगा ही. अरे भई, दो लोग सिर्फ इसलिए भी शादी कर सकते हैं कि उन्हें एक-दूसरे के साथ रहना है. एक कपल भी एक परिवार ही है. बच्चा पैदा करने से ही परिवार पूरा होता है, ये एक दकियानूसी सोच है.

हमारे यहां न समाज के नाम पर, चार लोगों के नाम पर बच्चों को पुश करने का कल्चर बहुत आम हो गया है. कभी किसी से तुलना करके, तो कभी ये बताकर कि शर्माइन क्या कह रही थीं, बच्चों को पहले शादी और फिर बच्चा करने के लिए प्रेशराइज़ किया जाता है. और ये प्रेशर इससे कहीं पहले शुरू होता है, तुम कौन सा विषय पढ़ोगे से शुरू होकर कौन सा एंट्रेंस एग्जाम दोगे तक बिना ये जाने कि बच्चा क्या चाहता है. बिना ये समझे कि उससे जो उम्मीद लगाई जा रही है उसके लिए वो तैयार है कि नहीं.


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